(नागपत्री एक रहस्य-18)

विकास सोचने लगा की आखिर उनके पूर्वज यहां कैसे???? लेकिन वे दोनों कुछ सोच पाते उसके पहले ही इतना प्यारा वातावरण और नाग स्तुति करती अचानक न जाने कितनी ही नाग कन्याएं हाथों में माला लिए उपस्थित हो गयी,
           
सभी बड़े भावविभोर हो स्तुति कर रहे थे, और विकास के पूर्वज भी उनकी अगुवाई कर रहे थे, ऐसे लग रहा था जैसे ये सब उनके पूर्वज का साथ देने के लिए ही आयी हो,


वे दोनों कुछ सोच पाने की हालत में नहीं थे, क्योंकि इस मंदिर को जितना सामान्य समझ कर उन्होंने प्रवेश किया था, वह उतना ही रहस्यमयी होते जा रहा था, अब तो सुधा की भी हिम्मत जवाब देते जा रही थी, उसे अपने आप पर पछतावा हो रहा था, और वह विकास को लेकर चिंतित भी हो रही थी, की कही उसकी अन छुई ख्वाईश विकास के लिए कोई बाधा न खड़ी कर दे, क्यूंकि इतना रहस्यमयी मंदिर की कल्पना वास्तविक जीवन में कर पाना भी संभव नहीं होता, और खासकर इस युग में असंभव।


जब हम साइंस की बाते करते है, धरती के आगे कही जीवन नहीं स्वीकारते, मनुष्य के अलावा किसी की शक्ति को नहीं मानते और तब अचानक किसी ऐसे युग में इतनी रहस्यमयी दुनिया सुधा के होश उड़ा दे रही थी लेकिन वापसी भी संभव नहीं और न जाने क्यों अब उसका उत्साह भी बढ़ता जा रहा था, वह मन ही मन उस अंतिम दरवाजे के आगे जाकर शिव दर्शन को लालायित थी।
                    
इतनी सोच और उहापोह में डूबी सुधा को अपनी वास्तविक हालत का भी भान न रहा, और वह जय भोलेनाथ जय शिवशंकर के नारे लगाने लगी,

अचानक उसमे न जाने कहाँ से इतना जोश आ गया, उसे देख ऐसा लग रहा था, जैसे वह अंतिम दरवाजे से भी आगे निकल गयी हो, उसके शोर में बाकि सबके स्वर दब से गए,
                        
वास्तव में सभी नागकन्याएं वहां उपस्थित नागराज संग शिव जी का ही पूजन कर रहे थे, जैसे ही उसको होश आया  और वह चेतना में आयी तब तक उनकी हालत सामान्य हो चुकी थी, और सभी नागकन्याएं उसे देख मुस्करा रही थी।


वह मारे शर्म के शांत होकर विकास की ओर देखने लगी, और विकास ने अपने पूर्वज की ओर इशारा किया, जैसे वह यह कहना चाहा रहा हो की ये यहाँ कैसे?????
लेकिन उनके पूर्वजों के सख्त चहेरे के सामने विकास कुछ कह नहीं पाया।
                       
पूजन के पश्चात उन्होंने जब सब कुछ सामान्य हो गया, और शिवलिंग  विलुप्त हो गया, तब उन्होंने किसी विशेष निशान की और इशारा किया और अचानक अंतर्ध्यान हो गए,


वो कैसे यहाँ आयें???
और उनकी मदद की और अचानक कैसे चले गए????
यह सुधा के लिए बड़ा विचित्र था,
विकास और सुधा वे खुद भी सामान्य है, या फिर वो भी, सुधा तो जैसे रह रह कर न जाने कहा खोते जा रही थी, समय समय पर विकास को उसे सचेत करना होता था,

अब वे दोनों चौथे दरवाजे के समीप खड़े थे, लेकिन खुलेगा कैसे यह समझ नहीं आ रहा था????
दोनों इधर उधर देखने लगे लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था, वापस लौट जाना भी संभव नहीं, तभी उन्होंने  वहाँ एक सूरजमुखी का फूल देखा, जो भीतर आती हुयी रोशनी की विपरीत दिशा में था।
                     
अनायास ही विकास ने उसे पलटना चाहा, और जैसे ही वह सूर्य की दिशा में आया तेज़ रोशनी के साथ वह अपने स्थान पर घूमने लगा और अगला दरवाजा खुल गया।

चौथा दरवाजा खुलते ही सुधा और विकास ने देखा की आगे विशाल समुद्र सा है, और बीच में एक ब्रह्मकमल नुमा आकृति जैसा जो कि उन्होंने आते समय देखा था, ठीक वैसे ही चारो ओर  से पानी के फव्वारे जो बिलकुल बीच में ऐसे  गिर रहे थे, जिसको देख यह कल्पना कर पाना संभव नहीं था, कि वह जल भीतर से बाहर आ रहा है की बहार से भीतर जा रहा है,
                        
लेकिन इस बार उनका इतना साहस नहीं था,  की वो जांच कर देख सके, क्योकि एक नमूना उन्होंने देखा हुआ था, और इतनी रहस्यमयी घटनाओ के बाद उन्होंने इतना दुःसाहस करना भी नहीं चाहा, वो तो सिर्फ़ अब बाहर का रास्ता कैसे पाए ये देख रहे थे।

       

साहस कर उन्होंने आगे बढ़ना चाहा लेकिन तभी अचानक समुद्र की लहरे जैसे उछाल मारने लगी,  पूरा वातावरण लहरों के शब्द से गुंजायमान हो उठा, और उन्होंने देखा एक विशाल शिवजी की मूर्ति वो भी शयन मुद्रा में अचानक समुद्र से उठकर ऊपर जल पर तैरने लगी और वातावरण शांत हो गया।
                        
इतने छोटे से कक्ष में इतनी विशाल पृष्ट्भूमि इतनी घटनाये अब जैसे दोनों के लिए सब कुछ सामान्य सा था, क्योकि वो पहले ही समझ चुके थे की इस रहस्यमयी मंदिर में सब कुछ संभव है फिर भी आश्चर्य तो होना स्वाभाविक ही था,

         

वे दोनों वहां तक जाने का रास्ता सोच ही रहे थे, कि जल के शांत होते ही दोनों ने उसके धरातल में झांक कर देखा तो, ये क्या जहाँ जल के ऊपर शिवजी नजर आते, तो वही परछाई में विष्णु जी की छवी दिखती, क्या अद्भुत दृश्य था...
                        
ऐसा लगता था जैसे बिल्कुल आईने में एक साथ दो तस्वीरें, कोई अंतर नहीं।

अब तो सुधा और विकास को उन दोनों में कोई अंतर ही नहीं जान पड़ता था, दोनों आश्चर्यचकित हो अपने आप को धन्य मानने लगे की जिनके दर्शन को ऋषि मुनि न जाने क्या-क्या जतन करते है, उन स्वम्भू नारायण और शिव शंकर के दर्शन उन्हें ऐसे ही प्राप्त हो गए, आखिर क्या वाकई इतने भाग्यवान है, वो और यदि है तो कैसे??

क्या जैसा पुजारी जी ने कहा था, उनके पितरों ने उनके लिए प्रार्थना की तभी तो सुधा को उनके पिताजी और विकास को उनके पूर्वज मदद करते नजर आएं, लेकिन वो यहाँ क्या रहे थे? और उनका इस मंदिर से क्या लेना देना, तभी उन्होंने उनके न जाने कितने ही पूर्वजो को जिन्हे वे जानते थे, या वो भी जिन्हे उन्होंने सिर्फ सुना था वे सभी पूजन करते नजर आयें।

दोनों ने सभी को प्रणाम किया, तभी एक अजनबी सी आवाज ने उन्हें चौंका दिया, वो लगता किसी स्त्री की थी, वह पल भर के लिए धूमिल छवि  में नजर आती और कभी नहीं वह बोली, अगर आगे जाना है, तो मेरे सिर्फ तीन सवाल का जवाब दो रास्ता मिल जायेगा और दर्शन भी हो जायेंगे।
                
लेकिन यदि गलत जवाब दिए तो सजा में तुम्हे कुछ अनमोल खोना होगा, और वापसी का रास्ता तो समझना ही नहीं की ऐसे ही मिल जायेगा।

आखिर क्या सवाल वह महिला उनसे पूछना चाहती थी??

क्रमशः...

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2 Comments

Babita patel

15-Aug-2023 02:03 PM

Nice

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Punam verma

26-Jul-2023 05:08 PM

Nice

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